चेेतावनी. अगर इस पर ही ध्यान दिया गया तो मामलों का पता लगाने में बड़ी चूक होगी
BTNS नई दिल्ली 26 जुलाई 2020
कोरोना महामारी जब से देश में फैली है तभी से सभी स्थानों पर लोगों के शरीर का ताप नापने पर फोकस किया जा रहा है। व्यक्ति के शरीर का टम्प्रेचर नॉरमल आने पर मान लिया जाता है कि उसमें कोरोना संक्रमण के लक्षण नहीं हैं। लेकिन हाल के एक शोध में ये साबित हो चुका है कि बुखार ही कोविड 19 पॉजिटिव होने का प्रमुख लक्षण नहीं है, इसलिए अगर इस पर ही ध्यान न दिया गया तो मामलों का पता लगाने में बड़ी चूक होगी
एम्स में भर्ती मरीजों पर किया गया शोध
ये दावा इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन के आधार पर किया जा रहा है। जिसमें कहा गया है कि बुखार को प्रमुख लक्षण मान कर सिर्फ इसी पर सबसे ज्यादा ध्यान देने से कोरोना वाररस से संक्रमित लोगों के बारे में पता लगाने में बड़ी चूक हो सकती है। ये अध्ययन नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स में भर्ती मरीजों पर किया गया। जहां सबसे अधिक संख्या में कोरोना संक्रमितों का इलाज चल रहा हैं। एम्स में भर्ती उत्तर भारत के 144 कोरोना मरीजों पर किए गए इस अध्ययन में ये खुलासा हुआ।
144 मरीजों में 93 फीसदी पुरुष थे
एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया के प्रतिनिधित्व में 29 शोधकर्ताओं द्वारा ये अध्ययन किया गया। इस अध्ययन को ‘क्लीनिको-डेमोग्राफिक प्रोफाइल एंड हॉस्पिटल आउटकम ऑफ कोविड-19 पेशेंट एडमिटेड एट ए टर्शरी केयर सेंटर इन नार्थ इंडिया’ नाम दिया गया है और इसमें 23 मार्च से 15 अप्रैल के बीच भर्ती मरीजों से जुड़े आंकड़े प्रयोग किए गए। अध्ययन में शामिल इन 144 मरीजों में 93 फीसदी (134) पुरुष थे। इनमें 10 विदेशी कोरोना पॉजिटिव मरीज भी शामिल थे।
शोध में हुआ ये भी खुलासा
इन 144 लोगों में केवल 17 फीसदी मरीजों को बुखार आया, जो कि दुनिया भर की अन्य रिपोर्ट की तुलना में काफी कम है, जिसमें चीन की वह रिपोर्ट भी शामिल है़। जिसके अनुसार 44 फीसदी लोगों को शुरू में बुखार आया जबकि अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान 88 फीसदी बुखार से पीड़ित हुए। एम्स ने जिन मरीजों पर शोध किया , उनमें सिम्पटमैटिक मरीजों में नाक बंद होने, गले में खराश और सर्दी-खांसी जैसे सांस लेने से जुड़े मामूली लक्षण ही नजर आए, जो कि अन्य अध्ययनों में शामिल लक्षणों से काफी अलग स्थिति है।
एसिम्पटमैटिक मरीज सामुदायिक स्तर पर वायरस के वाहक हो सकते हैं
शोध में बताया कि करीब 44 फीसदी, भर्ती होने के समय एसिम्पटमैटिक थे और ‘अस्पताल में इलाज कराने के दौरान पूरे समय उनकी स्थिति ऐसी ही रही। इस शोध में ये भी चेतावनी दी गई कि ये एसिम्पटमैटिक मरीज सामुदायिक स्तर पर वायरस के वाहक हो सकते हैं। कई मरीज ऐसे भी पाए गए जिसमें अधिकांश युवा वर्ग के थे उनके एसिम्पटमैटिक, पीसीआर टेस्ट बहुत समय तक निगेटिव आते रहे और इनके आईसीयू की कम ही जरूरत पड़ी। शोध में ये भी खुलासा हुआ है कि घरेलू स्तर पर और सार्वजनिक स्थानों पर लोगों के संपर्क में आने के बाद वो कोरोना के शिकार हुए।