एडवोकेट दवे ने कहा- COVID-19- लॉकडाउन के दौरान देश के नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करने की अपनी संवैधानिक भूमिका के अनुसार काम करने में विफल रही सुप्रीम कोर्ट
बीटीएन दिल्ली 25 मई 2020
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट COVID-19 लॉकडाउन के दौरान देश के नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करने की अपनी संवैधानिक भूमिका के अनुसार काम करने में विफल रहा है। दवे ने प्रवासी मजदूर संकट पर सुप्रीम कोर्ट के रुख की विशेष रूप से आलोचना की है, उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कार्यकारी के दावों पर विश्वास किया और प्रवासी मजदूरों के मामले में किसी भी प्रकार का सार्थक हस्तक्षेप करने से परहेज किया। उन्होंने कहा, “जज आइवरी टॉवर बैठ कर भारत के नागरिकों के दुखों के प्रति आंखों पर पट्टी बांधे नहीं रह सकते हैं।” उन्होंने कहा कि अगर न्यायपालिका ने कार्यपालिका को कड़े शब्दों में कहा होता कि वह एक भी प्रवासी मजदूर को पीड़ित नहीं होने देगी, तो कार्यपालिका ने उनकी मुश्किलों को कम करने के लिए लिए तत्काल उपाय किए होते। उन्होंने कहा कि पीआईएल की आड़ में न्यायपालिका कई मामलों में हस्तक्षेप करती रही है, लेकिन जब लॉकडाउन का संकट आया तो इसने कुछ न करने फैसला कर लिया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट न केवल अपने कर्तव्यों के निर्वहन में विफल रहा है, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के कर्तव्य को भी पूरा नहीं किया है। दवे ने कहा, “महामारी ने न्यायपालिका को वो मौका दिया था, जिससे वो लोगों के दिलों को जीत लेती और उस सम्मान की वापस पा लेती, जो इस देश ने उसे लंबे समय तक दिया है।” उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि न्यायपालिका इस अवसर को गंवा दिया।
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका ने स्पष्ट रूप से समझौता किया। यहां तक कि जो बेहतरीन जज थे, वो भी खामोश रहे। उन्होंने कहा, “ऐसा क्या है जो जजों को मामले का स्वतः संज्ञान लेने से रोक रहा है? उन्हें रोस्टर के मामले में मुख्य न्यायाधीश से भिड़ना चाहिए, लेकिन वे चुप हैं।” दवे ने कहा कि न्यायपालिका ने ऐसी ही निष्क्रियता तब भी दिखाई थी जब नोटबंदी के कारण लाखों लोगों पर सकंट आ गया था। उन्होंने कहा, “इसी सुप्रीम कोर्ट ने देश को निराश किया था, जब नोटबंदी की घोषणा की गई थी। पूरी कवायद एक आपदा साबित हुई। लाखों लोगों को परेशान करने के अलावा इसका कोई नतीजा नहीं निकला। काला धन भी नहीं खत्म हुआ। सरकार ने आंकड़े तक नहीं दिए।” उन्होंने कहा कि 4 घंटे के नोटिस पर देश भर में लॉकडाउन लगाना वैसी ही आपदा थी। दवे ने कहा कि न्यायपालिका के बारे में जनता की राय अत्यधिक नकारात्मक है। दवे ने कहा, “यदि आप आज सोशल मीडिया देखें तो हजारों लोग हैं जो न्यायपालिका को लेकर आलोचनात्मक हैं। यह अलग बात है कि जज उन्हें नहीं पढ़ते हैं। लोगों की न्यायपालिका के बारे में अच्छी राय नहीं है। और यह राष्ट्र के लिए अच्छा नहीं है। मुझे न्यायपालिका से प्यार है। हम चाहते हैं कि हमारी न्यायपालिका बेहतर, और प्रभावी हो, परिणाम दे और नागरिकों की रक्षा करे और कार्यकारी को 4 घंटे के नोटिस पर लॉकडाउन लगाने और नोटबंदी जैसे फैसले लेने से रोके। हम चाहते हैं कि न्यायपालिका अपना कर्तव्य निभाए।”